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मंगलवार, 13 जून 2017

ये जानते हुए कि ...

ये जानते हुए
कि
नहीं मिला करतीं खुशियाँ यहाँ
चाँदी के कटोरदान में सहेज कर
जाने क्यों
दौड़ता है मनवा उसी मोड़ पर

ये जानते हुए
कि
सब झूठ है, भरम है
ज़िन्दगी इक हसीं सितम है
जाने क्यों
भरम के पर्दों से ही होती है मोहब्बत

ये जानते हुए
कि
वक्त की करवट से बदलता है मौसम
और ज़िन्दगी क्षणभंगुर ही सही
जाने क्यों
ज़िन्दगी से ही इश्क होता है यहाँ

सिफ़र से शुरू सफ़र सिफ़र पर ही ख़त्म होता है जहाँ
फिर किस पाहुन की पहुनाई करूँ यहाँ ??


डिसक्लेमर
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©वन्दना गुप्ता vandana gupta

1 टिप्पणी:

Sweta sinha ने कहा…

बहुत सुंदर रचना आपकी👌👌