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शुक्रवार, 29 जून 2012

यूँ ही नहीं कुर्बान होती मोहब्बत वक्त के गलियारों में ...........

अहसासो ख्यालो की एक अनूठी दुनिया की 
सैर पर निकला हो कोई 
और जैसे पांव किसी सुलगते दिल को छू गया हो …………
आह ! ऐसे ही नही निकला करती। 


सजदे में सिर झुका कर
कर रहा हो कोई इबादत 
और जैसे मुस्कान कोई रूह को छूकर निकल गयी हो ...........
यूँ ही नहीं मिला करता मौला किसी फकीर को 

रेशम के तारों से काढ रहा हो 
कोई अपने सपनो का ताजमहल 
और जैसे मुमताज के जिस्म में हरारत हो गयी हो 
यूँ ही नहीं शहंशाह बना करते है .........

तबियत से लिख रहा हो रात की स्याही से 
कोई फ़साना खुदाई नूर का 
और जैसे खुदा ने हर लफ्ज़ पढ़ लिया हो
यूँ ही नहीं कुर्बान होती मोहब्बत वक्त के गलियारों में ...........

सोमवार, 25 जून 2012

जलती चिताओं का मौन भी कभी टूटा है?

जलती चिताओं का मौन भी कभी टूटा है?
शायद आज फिर से कोई तारा टूटा है


 आज फिर किसी रात का बलात्कार हुआ है
शायद आज फिर किसी का नसीबा रूठा है

दिन के उजाले भी कभी रुसवा हुए हैं

शायद आज फिर अंधेरों का भरम टूटा है

मिटटी के खिलौनों को कब धडकनें मिली हैं

शायद आज फिर खुद से साक्षात्कार हुआ है

बेशर्मी बेईमानी की चिताएं भी कभी सजती हैं

शायद आज फिर से कहीं ईमान होम हुआ है

गुरुवार, 21 जून 2012

जो होती अलबेली नार




जो होती अलबेली नार 

करती साज श्रृंगार 

प्रियतम की बाट जोहती

नैनो मे उनकी छवि दिखती 

कपोलों पर हया की लाली दिखती 

अधरों पर सावन आ बरसता 

माथे पर सिंदूरी टीका सजता 

जो प्रियतम के मन मे बसता 

जीवन सात सुरों सा बजता  





 जो होती अलबेली नार
तिरछी चितवन से उन्हें रिझाती
नयन बाण से घायल कर जाती
हिरनी सी चाल चल जाती
मतवारी गजगामिनी कहाती 
प्रियतम के मन को भा जाती 
गाता जीवन मेघ मल्हार





जो होती अलबेली नार
बिना हाव भाव के भी
प्रियतम के मन में बस जाती 
अपनी प्रीत से उन्हें मनाती
उनकी सांसें बन जाती 
जीवन रेखा कहलाती 
पाता जीवन पूर्ण श्रृंगार 


जो होती अलबेली नार...............

सोमवार, 18 जून 2012

मगर नहीं बन पातीं पत्थर, कागज ,मिटटी , हवा या खुशबू ज़िन्दगी की

ना पत्थर बनी
ना कागज ना मिटटी
ना हवा ना खुशबू
बस बन कर रह गयी
देह और देहरी
जहाँ जीतने की कोई जिद ना थी
हारने का कोई गम ना था 
एक यंत्रवत चलती चक्की
पिसता गेंहू 
कभी भावनाओं का 
कभी जज्बातों का
कभी संवेदनाओं का
कभी अश्कों का 
फिर भी ना जाने कहाँ से 
और कैसे 
कुछ टुकड़े पड़े रह गए
कीले के चारों तरफ
पिसने से बच गए
मगर वो भी
ना जी पाए ना मर पाए
हसरतों के टुकड़ों को
कब पनाह मिली
किस आगोश ने समेटा
उनके अस्तित्व को
एक अस्तित्व विहीन 
ढेर बन कूड़ेदान की 
शोभा बन गए 
मगर मुकाम वो भी
ना तय कर पाए
फिर कैसे कहीं से
कोई हवा का झोंका
किसी तेल में सने 
हाथों की खुशबू को 
किसी मन की झिर्रियों में समेटता
कैसे मिटटी अपने पोषक तत्वों 
बिन उर्वरक होती
कैसे कोरा कागज़ खुद को 
एक ऐतिहासिक धरोहर सिद्ध करता
कैसे पत्थरों पर 
शिलालेख खुदते 
जब कि पता है
देह हो या देहरी
अपनी सीमाओं को
कब लाँघ पाई हैं
कब देह देह से इतर अपने आयाम बना पाई है
कब कोई देहरी घर में समा पाई है
नहीं है आज भी अस्तित्व 
दोनों है खामोश
एक सी किस्मत लिए
लड़ रही हैं अपने ही वजूदों से
मगर नहीं बन पातीं
पत्थर, कागज ,मिटटी , हवा या खुशबू ज़िन्दगी की
यूँ जीने के लिए मकसदों का होना जरूरी तो नहीं ............

रविवार, 17 जून 2012

इक हसीं शाम के संग्………पुस्तक विमोचन की एक झलक

सतीश सक्सैना जी की पुस्तक "मेरे गीत" के विमोचन की कुछ झलकियाँ




सतीश जी के लिये सरप्राइज़ पैकेट
 




 आखिर
 हमने भी धरना दे ही दिया
 





सतीश सक्सैना जी की पुस्तक मेरे गीत का विमोचन
 




 आ गये आ गये…… छा गये छा गये


 मुकेश की खामोशी भी बोलती है



बार बार दिन ये आये
 …है ना मुकेश





सुनीता शानू जी अपने बेटे के साथ
 




 मेरे गीत का विमोचन



 एक शाम ब्लोगर मंडली के नाम



खामोश खामोशी और हम का विमोचन
 




 रश्मि प्रभा जी के संपादन मे मुकेश छा गया



दिल की ये आरजू थी कोई दिलरुबा मिले ……मिल गयी ना मुकेश:)
 





मुख्य अतिथि देवेन्द्र शर्मा इन्द्र ,जी सतीश जी, राजेन्द्र अग्रवाल जी ,अमिताभ जी



अपने अन्दाज़ मे




सतीश जी का भावपूर्ण स्वागत वक्तव्य
 आँखें नम कर गया




 मुस्कुराहट बेसबब तो नही



संजय भास्कर के साथ राजीव तनेजा जी
 





जो खुद बोलती है 



मुख्य अतिथि का वक्तव्य
 





ध्यान से सुनते अतिथि



सभा मे उपस्थित अतिथिगण
 





ध्यान से सुनते हुये
 





सबके अपने अपने विचार
 





अरुण जी एक बार फिर हत्थे चढ गये आँख बंद किये :)
 





अंजू के साथ
 





शहनवाज़ जी के साथ



सुन्दर शाम के सुन्दर पल
 




छा गये गुरु
 


शुक्रवार, 15 जून 2012

नारीलता का फूल

दोस्तों फ़ेसबुक पर ये फ़ोटो देखा फिर गूगल मे जाकर देखा तब जाकर विश्वास हुआ कुदरत के अजब गज़ब करिश्मे पर ..........अब इस करिश्मे को देखकर जो भाव उतरे वो आपके समक्ष हैं।

सुना है
नारीलता  फूल 
२० साल में बनता है
हिमालय की तराइयों में 
कहीं उगता है
कुदरत का करिश्मा न्यारा है
नारी की आकृति को
यूँ उभारा है 
नारी नहीं रहीं तुम अबूझ पहेली 
देखो तो सही
कुदरत का करिश्मा
टांग दिया है जिसने तुम्हें 
शाखों पर टहनियों पर 
बना कर फूल 
बता दिया दुनिया को
तुम कितनी कोमल हो 
फूल की मानिन्द 
यूँ ही नहीं उसने तुम्हें
फूल की मानिन्द उगाया है
कुछ और भी तो बना सकता था
जड़ , पत्ते , टहनी या तना
मगर नहीं किया उसने ऐसा 
जानती हो क्यों 
जानता है वो ........कोमलांगी हो तुम
कैसे सहेजता है ना
२० वर्ष लग जाते हैं उसे भी
तुम्हें आकार देने में 
कितनी सतर्कता से परवरिश करता है
वक्त पर खाद पानी सब देता है
तब जाकर तुम्हारा रूप खिलता है
मगर देखो तो सही
यहाँ कैसे तुम्हारे रूप का 
दुरूपयोग हुआ
कैसे तुम्हारा तिरस्कार हुआ
तभी तो गर्भ में ही तुम्हें
मिटाने का आदेश हुआ
आह ! जिस रूप को सँवारने में
कुदरत भी वक्त लेती है
जिस आकार को बनाने में
कुदरत भी इंतज़ार का दंश सहती है
उसे कैसे वीभत्सता से 
नृशंसता से मारा जाता है 
ये देख कुदरत भी रोती है 
ओ मनुज! हो जा सावधान
गर कुदरत ने नियम बदल दिया
और तूने उसका यूँ ही अपमान किया
कहीं ऐसा ना हो जाये
२० वर्ष की जगह २० युग बीत जाएँ
और तू ममतामयी रूपों के लिए तरस जाए
जो नारी को ये रूप दे सकता है
सोच जरा वो क्या नहीं कर सकता है
मत कर नारी का अपमान
जो नारी जीवन को गति देती है
कुदरत भी उसकी देख
कैसे देखरेख करती है
नारीलता फूल की बनावट यही कहती है 
अब तो बीस वर्ष में उगती हूँ
कहीं ज्यादा तिरस्कार किया
ऐसा ना हो जाये
विलुप्त प्राणियों की श्रेणी में मेरा भी आगाज़ हो जाये ............



बुधवार, 13 जून 2012

मगर आज भी भारत तो मेरे गाँव में ही बसता है


सुना है
कभी देखा नहीं
भारत तो गाँव में बसता है
मगर फिर भी तो देखो
गाँव की क्या दुर्दशा है
ना बिजली का अता पता है 
ना पानी की कोई व्यवस्था है 
सीवेज का भी हाल बुरा है 
मूलभूत बुनियादी जरूरतों के बिना है 
फिर भी खुशहाल दिखता है
हर चेहरे पर एक तबस्सुम मिलता है
अपनेपन की खुशबू बहती है 
जो आँखों से झलकती है
शहरीकरण की आबोहवा ने रुख 
बेशक इधर भी किया है 
मगर आज भी भारत तो 
मेरे गाँव में ही बसता है 

जहाँ अतिथि भगवान बन जाता है 
संतुष्टि का भाव हर चेहरे पर नज़र आता है 
भेदभाव वैमनस्य से दूर का नाता है 
अपनी समस्याओं से खुद जूझना 
जिन्हें आता है 
खेत खलिहान , चौपाल , पंचायत 
हँसी ठिठोली , ठेठ बोली
गाँव की मासूमियत दर्शाती है 
पर यहाँ मेड खुद खेत को नहीं खाती है 
अपनी पहचान ना डुबोती है
तभी तो भारत की पहचान
गावों में बसती है 

बेशक नए उपकरण अपनाते हैं
नयी जानकारियों का 
सुन्दर उपयोग करते हैं 
शहरीकरण की बयार में तब भी
बहे नहीं जाते हैं 
ये मासूम गाँव की खुली 
ताज़ी हवा सम बहते हैं 
फिर चाहे दो वक्त की 
रोटी का जुगाड़ भी मुश्किल से करते हैं 
मगर गाँव की मिटटी से जुड़े रहते हैं 
प्राकृतिक आपदाओं को सहते हैं
पर अपने जुझारू हौसलों से बुलंद रहते हैं
खेतों का सीना चीर 
सबका पेट ये भरते हैं
मगर कर्त्तव्य से ना पीछे हटते हैं
तभी भारत की परम्पराएं 
आज भी जीवित दिखती हैं
जो गाँव में ही बसती हैं 
अपनी निश्छलता , निष्कपटता और मासूमियत से सजे 
यूँ ही नहीं गाँव आज भी देश का ताज बने हैं .........


शनिवार, 9 जून 2012

रात को साढे ग्यारह बजे ………सरप्राइज़

आखिर ज़िन्दगी का पहला केक काट ही लिया ………आप सबके लिये 



पेश है





रात को साढे ग्यारह बजे मिली खुशी




सरगम मेरी भानजी





जो ना सोचा वो हो गया




मम्मी और मेरी बहन







पवन जी के साथ नन्दिनी



बच्चों ने आखिर बच्चा बना ही दिया







मधुर मिलन की मधुर यादें






खुशियों की सौगातें





बार्बी डाल्स







हम भी बच्चे बन ही गये




बच्चों के साथ बच्चा बनती





 नन्दिनी, माही और अनन्या के संग ईशान




 तस्वीरें भी बोलती हैं



गाते थे कभी हम भी अगर बच्चे होते और आज बच्चा बन ही गये







भामिनी के साथ



माही को गोद मे लिये





ज़िन्दगी भर ना भूलेगी ये रात की बात





समेट लिया लम्हों को





 गौरी मेरे भानजे की वाइफ़



यादगार शाम







भुलाये ना भूलने वाले लम्हे






दो बहनो का है जमीं पर मिलन :)






बचपन के रंग



मस्ती मे मस्त





ये भी जरूरी है :)





ये है मेरा भांजा उज्जवल

 ........ये सब इसी का किया धरा है 



ज़िन्दगी का सबसे प्यारा सरप्राइज़ …………हमेशा याद रहने वाले लम्हे 
ये है कल रात की तस्वीरें …जब हम सोने की तैयारी मे थे और बैल बजी सोचा किसने बजायी और देखा तो सब आये थे और हम गाऊन मे थे :)))))))) जल्दी जल्दी चेंज किया  ……फिर तो बच्चा बनना ही पडा ……और कहना पडा ………दिल तो बच्चा है जी :)))