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बुधवार, 20 जनवरी 2010

मन की गलियाँ

मन की
विहंगम गलियाँ
और उसके
हर मोड़ पर
हर कोने में
इक अहसास
तेरे होने का
बस और क्या चाहिए
जीने के लिए
वहाँ हम
तुझसे बतियाते हैं
और चले जाते हैं
फिर उन्ही गलियों के
किसी मोड़ पर
और खोजते हैं
उसमें खुद को
ना तुझसे बिछड़ते हैं
ना खुद से मिल पाते हैं
और मन की गलियों की
इन भूलभुलैयों में
खोये चले जाते हैं

22 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

ना तुझसे बिछड़ते हैं
ना खुद से मिल पाते हैं
और मन की गलियों की
इन भूलभुलैयों में
खोये चले जाते हैं
भूलभुलैयों बहुत अच्छी लगीं - खोएं रहें - सुंदर रचना के लिए बधाई.

अजय कुमार ने कहा…

मन की गलियां दूर तक सैर कराती हैं

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

सुंदर पंक्तियों... के साथ बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....

कविता मन को छू गई.....

मनोज कुमार ने कहा…

रचना में अद्भुत ताज़गी है। एक अहसास और एकाकी ... एक अपना का संगम।
मन की
विहंगम गलियाँ
और उसके
हर मोड़ पर
हर कोने में
इक अहसास
बहुत अच्छी कविता।

सदा ने कहा…

बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

सुन्दर कविता, वसंत पंचमी की शुभकामनाये !

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मन की गलियों में भटकना ही तो ज़िन्दगी है

Prem Farukhabadi ने कहा…

और चले जाते हैं
फिर उन्ही गलियों के
किसी मोड़ पर
और खोजते हैं
उसमें खुद को
ना तुझसे बिछड़ते हैं
ना खुद से मिल पाते हैं
और मन की गलियों की
इन भूलभुलैयों में
खोये चले जाते हैं
yakeenan bahut sundar baat kahi hai apne .Badhai!!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

wakai vandana ji...
bahut achha laga is bhool bhulaaiya mein kho kar...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ये मन की गलियां होती ही ऐसी हैं जहाँ इंसान खुद को खोजता रह जाता है....खूबसूरत लेखन....

समयचक्र ने कहा…

सुंदर रचना
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाये ओर बधाई आप को .

मनोज कुमार ने कहा…

आपको वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की शुभकामनाये !

peeyush ने कहा…

मन की विहंगम गलियाँ, ये भूल-भुलैयाँ, जहाँ खुद से भी मिलना संभव नहीं, जहाँ भटकाव ही भटकाव है, वहां किसी से कैसे मिलें ... सुन्दर है

पर आप खुद को मेरे ब्लॉग पर आसानी से खोज सकती हैं.. :)

-पीयूष
www.NaiNaveliMadhushala.com

dipayan ने कहा…

अति सुन्दर रचना. अकेलेपन मे मह्सूस किया एक एह्सास. बहुत खूब, मन कि गलिंया.

rashmi ravija ने कहा…

और मन की गलियों की
इन भूलभुलैयों में
खोये चले जाते
और मन की इन्ही गलियों के खुशनुमा अहसास जीने का संबल बन जाते हैं..बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

हर मोड़ पर
हर कोने में
इक अहसास
तेरे होने का
बस और क्या चाहिए
जीने के लिए

यही तो जीवन है!
इसी का नाम तो स्वर्ग है!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

हर मोड़ पर
हर कोने में
इक अहसास
तेरे होने का
बस और क्या चाहिए
जीने के लिए ...

ये बात तो सच है .... जीने के लिए ये सहारा बहुत है ....... अच्छा लिखा .......

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

man ki vihangam galian.........................ahsaas tere hone ka..........behatareen...........bahut umda abhivyakti.

आशु ने कहा…

bahut sundar kavita..sundar rachna..

aashu

निर्मला कपिला ने कहा…

ना तुझसे बिछड़ते हैं
ना खुद से मिल पाते हैं
और मन की गलियों की
इन भूलभुलैयों में
खोये चले जाते हैं
वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है शुभकामनायें

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

ना तुझसे बिछड़ते हैं
ना खुद से मिल पाते हैं
और मन की गलियों की
इन भूलभुलैयों में
खोये चले जाते हैं

बहुत सुन्दर
सारा खेल मन का ही तो है 1

Reetika ने कहा…

dil ro baccha hai ji !! Gulzar saheb ki likhi yeh panktiyaan..sateek baith-ti hai..