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रविवार, 17 जनवरी 2010

मत करो ऐसा ...........

मैं कोई वस्तु नही
क्यूँ मेरी बोली लगाते हो
दुनिया की इस मंडी में
क्यूँ खरीदी बेचीं जाती हूँ
कभी धर्म के ठेकेदारों ने
मेरी बलि चढ़ाई है
कभी समाज के ठेकेदारों ने
मेरी बोली लगायी है
मैं भी इक इंसान हूँ
मुझमें भी खुदा बसता है
उसी खुदा की नेमत हूँ
जिसकी करते तुम आशनाई हो
फिर क्यूँ मुझे ही पीसा जाता है
क्यूँ मेरा ही गला दबाया जाता है
जननी भी हूँ , भगिनी भी हूँ
फिर भी भटकती फिरती हूँ
अपना अस्तित्व बचाने की चाह में
मर -मरकर भी जीती हूँ
मुझमें भी हैं अरमान पलते
मेरी भी हैं चाहतें मासूम
क्यूँ नही उन्हें मिली आज तक
दिल की जो गहराई है
क्यूँ अबला का तमगा चिपकाते हो
रिश्तों को क्यूँ बेडी बनाते हो
औरत हूँ मैं
सिर्फ भोग्या नही
मान क्यूँ नही लेते हो
कदम दर कदम चली मैं तुम्हारे
फिर क्यूँ नही मेरे साथ तुम चलते हो
अधिकरों की बात पर क्यूँ तुम
इतना शोर मचाते हो
कर्तव्यों की आंच पर क्यूँ
मेरी भावनाएं जलाते हो
क्या फर्क है मुझमें और तुममें
कौन सी कड़ी कमजोर है
फिर क्यूँ मुझे ही ये
ज़हर का घूँट पिलाते हो
मैं भी इक इंसान हूँ
मेरा भी लहू लाल है
मुझमें भी वो ही दिल है
बताओ फिर क्या फर्क है
मुझमें और तुममें
क्यूँ मुझे ही दोजख की
आग में जलाये जाते हो

19 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण रचना जो नारी की व्यथा कह रही है ....

श्रीमती अमर भारती ने कहा…

जननी भी हूँ , भगिनी भी हूँ
फिर भी भटकती फिरती हूँ
अपना अस्तित्व बचाने की चाह में
मर -मरकर भी जीती हूँ

बहुत ही मार्मिक रचना प्रस्तुत की है आपने!
इसका हर शब्द खोखले समाज पर चोट करता है।

"अर्श" ने कहा…

कड़वी सच्चाई कितने खुबसूरत शब्दों से सजाया है ... हो सकता है
कुछ पसंद ना करे... मगर सच तो सच ही है...


अर्श

Kusum Thakur ने कहा…

बहुत भावपूर्ण रचना !!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अधिकरों की बात पर क्यूँ तुम
इतना शोर मचाते हो
कर्तव्यों की आंच पर क्यूँ
मेरी भावनाएं जलाते हो

बहुत मार्मिक रचना...नारी की व्यथा को कहती हुई ....सुन्दर अभिव्यक्ति

Arvind Mishra ने कहा…

भावपूर्ण उदगार

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

bahut sundar rachna...ek pall k liye bhi nazar n ahi hata paaya...

aabhar!

अजय कुमार ने कहा…

नारी मन की व्यथित भावनाओं का अच्छा चित्रण और सही प्रश्न

Randhir Singh Suman ने कहा…

मैं कोई वस्तु नही
क्यूँ मेरी बोली लगाते हो
दुनिया की इस मंडी में
क्यूँ खरीदी बेचीं जाती हूँ
कभी धर्म के ठेकेदारों ने
मेरी बलि चढ़ाई है
कभी समाज के ठेकेदारों ने
मेरी बोली लगायी है
मैं भी इक इंसान हूँnice........................

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत ही मार्मिक दिल छूती रचना।

M VERMA ने कहा…

कभी धर्म के ठेकेदारों ने
मेरी बलि चढ़ाई है
कभी समाज के ठेकेदारों ने
मेरी बोली लगायी है
औरत की पीड़ा को आप जिस भावपूर्ण ढंग से अपनी कविताओं में सहेजती हैं वह हृदय में सीधे उतरती है.
बहुत ही मार्मिक है ये रचना.
बहुत सुन्दर

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

नारी व्यथा की मार्मिक व भावपूर्ण रचना.....!!

RAJ SINH ने कहा…

बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति .साहस और सच्चाई लिए .

रिश्ते जब बेड़ियाँ बनते हैं तो वहीं से सामाजिक , भावनात्मक गुलामी शुरू हो जाते हैं .

दिगम्बर नासवा ने कहा…

नारी की व्यथा को, उसके म्न की पीड़ा को प्रभावी ढंग से रखा है आपने ......... लाजवाब ......

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

भावपूर्ण शब्दों के साथ बहुत सुंदर रचना...

Alpana Verma ने कहा…

जननी भी हूँ , भगिनी भी हूँ
फिर भी भटकती फिरती हूँ
अपना अस्तित्व बचाने की चाह में
मर -मरकर भी जीती हूँ
-नारी व्यथा की भावपूर्ण और मर्म स्पर्शी अभिव्यक्ति.

किरण राजपुरोहित नितिला ने कहा…

ओह!!!!! सही कहा आपने।

shalini ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत लाइने लिखी हैं आपने .....और वाकई सच कहा है

समयचक्र ने कहा…

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये और बधाई .