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शनिवार, 27 जून 2009

क्यूँ नेह बढाते हो

क्यूँ नेह बढाते हो
मैं तो पत्थर हूँ
पत्थरों में स्पंदन नही होता
एक ऐसी जड़ हूँ
जिसमें जीवन नही होता
वो नदिया हूँ
जिसमें बहाव नही होता
वो आकाश हूँ
जिसका कोई दायरा नही होता
वो ठूंठ हूँ
जिस पर कोई फूल नही खिलता
वो साज़ हूँ
जिसमें कोई आवाज़ नही होती
वो सुर हूँ
जिसकी कोई ताल नही होती
वो ज़ख्म हूँ
जिसकी कोई दवा नही होती
वो ख्वाब हूँ
जिसकी कोई ताबीर नही होती
वो कोशिश हूँ
जो कभी पूरी नही होती
वो दीया हूँ
जिसमें बाती नही होती
वो चिराग हूँ
जिसमें रौशनी नही होती
वो शाम हूँ
जिसकी कोई सुबह नही होती
फिर क्यूँ नेह
बढाते हो ................

13 टिप्‍पणियां:

ओम आर्य ने कहा…

PYAAR RUKATA NAHI HAI ..................WAH BAHATA PAANI HOTA HAI .......SO AAP MAT ROKO ..........SUNDAR

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वन्दना जी!
आपकी रचना सदैव की भाँति अपने में भावनाओं का सागर समेटे हुए है। मुझे इसमें ठूँठ पर फूल खिलने वाली पंक्ति बहुत अच्छी लगी। मगर ठूँठ पर फूल नही खिलते हैं केवल उल्लू ही बैठते हैं । जहाँ उल्लू होते हैं, वहाँ लक्ष्मी का अथाह भण्डार होता है। इसलिए उल्लुओं पर भी प्यार आ जाता है। सच पूछा जाये तो आजकल उल्लू बनने में ही आनन्द है। उल्लू को सब उल्लू समझते हैं पर तो सदैव दूसरों को ही उल्लू बनाता है और अपना उल्लू सीधा करता है। रही बात नदिया की तो बहते पानी को नदिया कहा जाता है और रुके हुए जल को तो तो तालाब ही पुकारा जाता है। यह सभी जानते हैं कि नदी में स्वच्छता होती है और तालाब में सड़ाँध होती है। यदि वह फिर भी नदी है तो निश्चय ही स्नान के काबिल होगी। अन्त में-
‘‘जलने को परवाने आतुर, आशा का दीप जलाओ तो।’’

सदा ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों के साथ बेहतरीन रचना बधाई ।

shyam gupta ने कहा…

तथ्यात्मक त्रुटियां हें- नदिया है तो बहाव होगा, सूखी कहिये, जड में सदैव जीवन होता है, , आकाश का दायरा न होना धनात्मक गुण है यहां नही आना चाहिये, साज़ व ताल आवाज़्व ताल के विना नहीं हो सकते ,
दिया व चिराग एक ही हैं अतः पुनुराव्रत्ति दोष है ।

Prem Farukhabadi ने कहा…

सुन्‍दर बेहतरीन रचना बधाई !!

सुशील छौक्कर ने कहा…

क्या सुर ताल बनी है इस रचना में। वाह।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मैं तो पत्थर हूँ......क्यूँ नेह बढाते हो?..........ऐसी निराशा ? ऐसी खान हूँ,जहाँ शब्द हीरे से होते हैं,यह भी लिखना था न

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

bahut hi alag aur kya kahuin aaj to saari bhavnaaon ko samet kar..
shabdon ka aisa bhwar banaya hai aapne..
jisme poora vishv sama gaya.......

Vinay ने कहा…

मन की परतेम खोलती हुई रचना

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चर्चा । Discuss INDIA

राकेश जैन ने कहा…

sundar rachna !

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

kuchh to hai tum men mera man kah raha hai
kyun tumhari or hi man bah raha hai
phool na patthar, nadi, akash na koi khwaab ho
tum to ho ek dard ka ahsaas jo man sah raha hai.

vandanaji , rachna behad manbhavan lagi.

vijay kumar sappatti ने कहा…

vandana ji

neh to apne aap hi badti hai ..chahe koi chaahe ya na chaahe ... pyaar me bahut shakti hoti hai ..aur aapki kavita me isi shakti ko darshaya gaya hai ..

aabhar

दर्पण साह ने कहा…

WAH VBANDANA JI...

HAR UPMA ADBHOOT HAI !!