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बुधवार, 8 अप्रैल 2009

कैसे ?

कैसे आऊं
ख्यालों में तुम्हारे
ज़माना देख न ले
कैसे रहूँ
दिल में तुम्हारे
दिल सबसे कह न दे
कैसे जियूं
संग तुम्हारे
ज़िन्दगी धोखा न दे दे
कैसे चलूँ
साथ तुम्हारे
राहें बदल न जायें
कैसे कहूँ
दिल की बातें
जहान सुन न ले

7 टिप्‍पणियां:

Rachna Singh ने कहा…

nice poem

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सच्चा प्यार जिन्दगी में सरनामी लाता है।

झूठा प्यार जिन्दगी में, बदनामी लाता है।।


प्यार अगर है प्यार वह दिल में ही रहता है।

विरह-व्यथा की बातें अपनों से ही कहता है।।

सुशील छौक्कर ने कहा…

इस रचना को पढकर अपनी तुकबंदी की चंद लाईने याद आ गई। ....... वैसे सुन्दर भाव लिखे है। दुनियादारी हर काम के बीच में क्यों आ जाती है? कभी इस पर भी लिखना।

अनिल कान्त ने कहा…

अच्छा लगा पढ़कर

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

वाह जी बहुत ही बेहतरीन रचना के लिए ढेरों बधाईयां

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर रचना है ...

silence ने कहा…

sach mein kasie kahun..kafi mushkil kaam hai...
nice poem