पेज

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लॉग से कोई भी पोस्ट कहीं न लगाई जाये और न ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जाये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

रविवार, 29 मार्च 2009

काश !

काश ! दिल न होता
तो यहाँ दर्द न होता

काश ! आँखें न होती
तो इनमें आंसू न होते

काश ! ज़िन्दगी न होती
तो यहाँ कोई मौत न होती

काश ! दिन न होता
तो यहाँ कभी रात न होती

काश ! बसंत न होता
तो यहाँ कभी पतझड़ न होता

काश ! प्यार न होता
तो यहाँ कभी जुदाई न होती

काश ! हम न होते
तो यहाँ कुछ भी न होता

शुक्रवार, 27 मार्च 2009

मधुरिम पल

कुसुम कुसुम से ,कुसुमित सुमन से
तेरे मेरे मधुरिम पल से
अधरों की भाषा बोल रहे हैं
दिलों के बंधन खोल रहे हैं
लम्हों को अब हम जोड़ रहे हैं
भावों को अब हम तोल रहे हैं
नयन बाण से घायल होकर
दिलों की भाषा बोल रहे हैं
हृदयाकाश पर छा रहे हैं
मेघों से घुमड़ घुमड़ कर
तन मन को भिगो रहे हैं
पल पल सुमन से महक रहे हैं
मधुरम मधुरम ,कुसुमित कुसुमित
दिवास्वप्न से चहक रहे हैं
तेरे मेरे अगणित पल
तेरे मेरे अगणित पल

बुधवार, 25 मार्च 2009

मैं पिता हूँ तो क्या मुझमें दिल नही

मैं पिता हूँ तो क्या मुझमें दिल नही
क्यूँ मुझे कमतर समझा जाता है
क्या मुझमें वो जज़्बात नही
क्या मुझमें वो दर्द नही
जो बच्चे के कांटा चुभने पर
किसी माँ को होता है
क्या मेरा वो अंश नही
जिसके लिए मैं जीता हूँ
मुझे भी दर्द होता है
जब मेरा बच्चा रोता है
उसकी हर आह पर
मेरा भी सीना चाक होता है
मगर मैं दर्शाता नही
तो क्या मुझमें दिल नही
कोई तो पूछो मेरा दर्द
जब बेटी को विदा करता हूँ
जिसकी हर खुशी के लिए
पल पल जीता और मरता हूँ
उसकी विदाई पर
आंसुओं को आंखों में ही
जज्ब करता हूँ
माँ तो रोकर हल्का हो जाती है
मगर मेरे दर्द से बेखबर दुनिया
मुझको न जान पाती है
कितना अकेला होता हूँ तब
जब बिटिया की याद आती है
मेरा निस्वार्थ प्रेम
क्यूँ दुनिया समझ न पाती है
मेरे जज़्बात तो वो ही हैं
जो माँ के होते हैं
बेटा हो या बेटी
हैं तो मेरे ही जिगर के टुकड़े वो
फिर क्यूँ मेरे दिल के टुकडों को
ये बात समझ न आती है
मैं ज़िन्दगी भर
जिनके होठों की हँसी के लिए
अपनी हँसी को दफनाता हूँ
फिर क्यूँ उन्हें मैं
माँ सा नज़र ना आता हूँ




शुक्रवार, 20 मार्च 2009

सोच ज़रा

सोच ज़रा
कितना दिल
दुख होगा
जब तेरी
खामोशी ने
उसको डंसा होगा
कुछ पल तो
साथ बिता लेते
उसके दिल का
हाल जान लेते
उसके ज़हर को
अमृत बना देते
उसे उसके दर्द से
निजात दिला देते
तो कुछ ही पलों में
दर्द के सागर में
ज़ज्बातों के
तूफ़ान की कश्ती
ठहर जाती
वो अपने दरिया में
सिमट जाती
तेरे साथ होने के
अहसास से ही
वो हर ज़हर को भी
अमृत समझ पी जाती
सोच ज़रा
कितना दिल दुख होगा

सोमवार, 16 मार्च 2009

दोहरी ज़िन्दगी

दोहरी ज़िन्दगी जीते हम लोग
हर पल चेहरे बदलते हैं
अपने लिए एक चेहरा
और दुनिया के लिए
दूसरा रखते हैं
अपने मापदंड अलग रखते हैं
अपने ख्वाबों के लिए
अपनी हर चाहत के लिए
हर हथकंडा अपनाते हैं
मगर जब वो ही ख्वाब
कोई दूसरा देखे तो
मापदंड बदल जाते हैं
फिर भी दुनिया
ना जान पाती हैं
चेहरे के पीछे छिपे चेहरे को
ना पहचान पाती हैं
हम अपने लिए जो चाहते हैं
क्यूँ दुनिया को ना दे पाते हैं
दूसरे का ख्वाब आते ही
क्यूँ हमारे अर्थ बदल जाते हैं
कब तक हम चेहरे बदल पाएंगे
दोहरी ज़िन्दगी की आग में
इक दिन ख़ुद ही जल जायेंगे
उस दिन ना हम
दुनिया के रह पाएंगे
और ना ही अपने आप के
फिर किस भुलावे में
जिए जाते हैं
दोहरी ज़िन्दगी की आग से
क्यूँ ना निकल पाते हैं
दोहराव कब टिका हैं
एक दिन तो आख़िर
मिटा ही हैं
हम भी कब तक
टिक पाएंगे
इक दिन इस दोजख से
शायद निकल पाएंगे

शनिवार, 14 मार्च 2009

कशमकश

कुछ कहने और न कहने के बीच झूलते हम
कभी हकीकत बयां नही कर पाते
कुछ लम्हों को जी नही पाते
कुछ लम्हों को जीना नही चाहते
कभी खामोश रहकर सब कह जाते हैं
कभी बोलकर भी कुछ कह नही पाते
न जाने कैसी विडम्बना में जीते हैं
न ख़ुद को जान पाते हैं
न दूसरों को जानने देते हैं
कभी किसी अनचाही दौड़ में
शामिल हो जाते हैं तो
कभी चाहकर भी कहीं
पहुँच नही पाते
न जाने किस चाह में जीते हैं
न जाने किस मय को पीते हैं
मगर फिर भी खाली ही रहते हैं
कभी कुछ पा नही पाते
किसी को कुछ दे नही पाते
न जाने किस भूख ने सताया है
न जाने किसकी तलाश में निकले हैं
न खो पाते हैं
न खोज पाते हैं
बस सिर्फ़
रो पाते हैं
और
उलझनों में ज़िन्दगी
गुजार जाते हैं
ना हंस पाते हैं
ना हंसा पाते हैं
सिर्फ़ भावनाओं में
बह जाते हैं या
कभी किसी को
बहा ले जाते हैं
मगर कभी
पार नही पाते हैं
सिर्फ़ कशमकश में
जीते हैं और मरते हैं
सिर्फ़ कशमकश में...........................

गुरुवार, 12 मार्च 2009

आवारा बादल

आज एक आवारा बादल
मेरी खिड़की में झाँका
कुछ बहकता सा
कुछ चहकता सा
दिल को कुछ यूँ
गुदगुदाने लगा
मैंने पूछा ,
क्यूँ आए हो
किसका तन मन
भिगोने आए हो
किसकी प्यासी रूह की
प्यास बुझाने आए हो
मगर वो तो सिर्फ़
इठलाता रहा
बलखाता रहा
मदमस्त सा,
अपने ही खुमार में
इधर से उधर
बरसता रहा
कभी ठंडी फुहार बनकर
तो कभी महकता
प्यार बन कर
कभी भंवरों सा
इठलाता था
कभी संगीत के सुरों सा
नाचता था
न जाने किस
मदहोशी में
डूबा था
किसके खुमार में
गुम था
उसे तो अपना भी
पता न था
फिर कैसे मुझे बतलाता
क्यूँ आया है
किसके दिल की
बगिया में
फूल खिलने आया है
किस फूल का
ये भंवरा है
किस गीत का
ये मुखडा है
किस साज़ की
ये आवाज़ है
किसके दिल का
प्यार है
किसके लिए
भटक रहा है
किस चाहत में
सिसक रहा है
किस कसक में
मचल रहा है
और
किसके लिए
बरस रहा है
यूँ आवारा
दर-दर
भटक रहा है
आज एक आवारा बादल
मेरी खिड़की में झाँका

रविवार, 8 मार्च 2009

आज फिर कहीं कोई मर गया है
आज फिर किसी की अर्थी उठी है
आज फिर किसी की चिता जली है
आज फिर कोई शख्स रुसवा हुआ है
तमाम तोहमतों के साथ
जिंदा होकर भी मर गया है

शुक्रवार, 6 मार्च 2009

तड़प

गुरुवार, 5 मार्च 2009

Wednesday, September 17, 2008

हमसफ़र साथ होते हुए भी तनहा हूँ मैं
ज़िन्दगी इससे बड़ी और क्या सज़ा देगी हमें

Thursday, September 11, 2008

मेरे आँगन में न उतरी धूप कभी
तब कैसे जानूं उसकी रौशनी है क्या
न बुन सकी कभी तमन्नाओं के धागे
न जोड़ सकी यादों के तार कभी
न जला सकी प्यार के दिए कभी
इस डर से की अंधेरे और न बढ़ जायें
माना नही ठहरती धूप किसी भी आँगन में
मगर मेरे आँगन में तो धूप की एक
छोटी सी किरण भी न उतर सकी
भला कैसे जानूं मैं किस तरह
खिला करती है धूप आँगन में
एक परछाईं हूँ ,न जाने कब गुम हो जाऊँ,
न करो इससे प्यार,एक छलावा हूँ,सिर्फ़ छलना जानती हूँ,
मुझे पकड़ने की दौड़ में कहीं तुम बहुत आगे न निकल आना
ज़माना साथ न दे सकेगा,तुम्हें ही पीछे जाना पड़ेगा,
एक साया सा हूँ मुझे छूने की कोशिश न कर,
कहीं ऐसा न हो ,तुम्हारा अपना साया ही
तुम्हारा साथ न छोड़ दे ।
आसमान पर लगे हैं हम तारों की तरह
न जाने किस दिन टूट कर गिर जायें






हो चुकी है रहगुजर कठिन
मुश्किल से मिलेंगे नक्शे कदम
वक्त की आंधियां चलीं कुच्छ इस कदर
कि हम झड़ गए ड़ाल से सूखे हुए पत्तों की तरह
हर आँचल हो पाक ये जरूरी तो नही
हर आइना हो साफ़ ये जरूरी तो नही
हर फूल में हो खुशबू ये जरूरी तो नही
हर खुशी हो अपनी ये जरूरी तो नही
हर अपना हो अपना ये जरूरी तो नही
इसलिए
हर चेहरा हो खिला ये जरूरी तो नही

Tuesday, September 9, 2008

मेरी मुस्कराहट तो एक ऐसा दर्द है
जो छुपाये बनता न दिखाए बनता





हर तरफ़ ये तूफ़ान सा क्यूँ है
हर इन्सान परेशां सा क्यूँ है
हर जगह ये सन्नाटा सा क्यूँ है
ये शहर भी वीरान सा क्यूँ है
क्या फिर किसी का दिल टूटा है
क्या फिर कोई बाग़ उजड़ा है
क्या फिर किसी का प्यार रूठा है
क्या फिर कोई नया हादसा हुआ है
शायद फिर से खंडहर बन गया है कोई
या ग़मों के हर दौर से गुजर गया है कोई
हर सितम सहूंगी उसके ये इकरार करती हूँ
इसे बेबसी कहूं या क्या कहूं,क्यूंकि
मैं उससे प्यार करती हूँ
जो गम दिए हैं मेरे देवता ने
मैं उनका आदर करती हूँ
उस सौगात का अनादर नही कर सकती,क्यूंकि
मैं उनकी पूजा करती हूँ
पुजारिन हूँ तुम्हारी में
बस इतना चाहती हूँ
मेरे मन मन्दिर में मेरे देवता
हर पल हर दिन बसे रहना
नही मांगती तुमसे कुछ मैं
मुझसे पूजा का अधिकार न लेना
दुनिया के कोलाहल से दूर
चरों तरफ़ फैली है शांती ही शांती
वीरान होकर भी आबाद है जो
अपने कहलाने वालों के अहसास से दूर है जो
नीरसता ही नीरसता है उस ओर
फिर भी मिलता है सुकून उस ओर
ले चल ऐ खुदा मुझे वहां
दुनिया के लिए कहलाता है जो शमशान यहाँ
उदास नज़र आता है हर मंज़र
नज़र आता नही कहीं गुलशन
हर तरफ़ क्यूँ उदासी छाई है
या फिर मेरे दिल में ही तन्हाई है
हर शय ज़माने की नज़र आती है तनहा
समझ आता नही ज़माने की उदासी का सबब
वीरान सा नज़र आता है हर चमन
या फिर मेरी नज़र में ही वीरानी छाई है
उड़न ज़िन्दगी की है कहाँ तक
प्यार ज़िन्दगी में है कहाँ तक
शायद
ज़िन्दगी है जहाँ तक
लेकिन
ज़िन्दगी है कहाँ तक
नफरत की सीमा शुरू हो
शायद वहां तक
प्यार की सीमा ख़त्म हो
शायद वहां तक

Sunday, September 7, 2008

हम तो ता-उम्र तुझ में ख़ुद को ढूंढते रहे
सुना था
प्यार करने वाले तो दो जिस्म एक जान होते हैं
क्या पता था
ये सिर्फ़ कुच्छ लफ्ज़ हैं

Thursday, September 4, 2008

लोग न जाने कैसे किसी के दिल में घर बना लेते हैं
हमें तो आज तलक वो दर -ओ-दीवार न मिली
लोग न जाने कैसे किसी के प्यार में जान गँवा देते हैं
हमें तो आज तलक उस प्यार का दीदार न मिला
लोग न जाने कैसे काँटों से दोस्ती कर लेते हैं
हमें तो आज तलक दर्द के सिवा कुच्छ भी न मिला
लोग न जाने कैसे जानकर भी अनजान बन जाते हैं
हमें तो आज तलक कोई अनजान भी न मिला
ज़ख्म कितने दोगे और यह तो बता दो
अब तो दिल का कोई कोना खाली न बचा
हाल-ऐ-दिल तो क्या तुम समझोगे मेरा
जब तेरे दिल के किसी कोने में जगह ही नही

Wednesday, September 3, 2008

किसी की चाहत में ख़ुद को मिटा देना बड़ी बात नही
गज़ब तो तब है जब उसे पता भी न हो
वो आज तक कुच्छ सुन नही पाया
जो हम उससे कभी कह न पाये
दिल के कुच्छ अरमान
शब्दों के मोहताज़ नही होते
कुच्छ वाकये तो नज़रों से बयां होते हैं
कोसी ने कर दिया
अपनों को अपनों से
कोसो दूर
अब के बिछडे
फिर न मिलेंगे कभी
ज़ख्म रूह के
फिर न भरेंगे कभी
हालत पर दो आंसू गिराकर
सियासत्दार फिर न
मुड़कर देखेंगे कभी
उजडे आशियाँ
फिर भी बन जायेंगे
पर मन के आँगन
फिर न भरेंगे कभी
जिस्मों से बंधे जिस्मों के रिश्ते
रूह का सफर कभी तय कर नही पाते
जो रिश्ते रूह में समां जाते हैं
वो जिस्मों की बंदिशों से आजाद होते हैं

Monday, September 1, 2008

ज्वार भाते ज़िन्दगी को कहाँ ले जायें पता नही
ज़िन्दगी भी कब डूबे या तर जाए पता नही
बस ज्वार भाते आते रहते हैं और आते रहेंगे
न पूनम की रात का इंतज़ार करेंगे
न अमावस्या की रात का
बस ज़िन्दगी इन्ही ज्वार भाटों के बीच
कब डूबती या समभ्लती जायेगी पता नही

Thursday, August 28, 2008

कभी कभी कुछ लफ्ज़ दिल को ज़ख्म दे जाते हैं
कभी कभी मरहम भी दर्द का सबब बन जाती है
कब कौन आ के कौन सा ज़ख्म उधेड़ दे ,क्या ख़बर
कभी कभी दुआएं भी बद्दुआ बन जाती हैं
तस्वीर का रुख बनाने वाले को भी न समझ आया
कभी कभी आईने भी तस्वीर को बदल देते हैं

Wednesday, August 27, 2008

जब ज़िन्दगी में भागते भागते हम थकने लगते हैं तब मन उदास होने लगता है । आत्मा बोझिल होने लगती है । कुच्छ देर कहीं ठहरने को दिल करता है मगर ज़िन्दगी तो ठहरने का नाम नही न . और हम एक ठिकाना ढूँढने लगते हैं जहाँ khud ko mehsoos kar सकें।कुच्छ der khud ko waqt ke aaine mein dekh सकें, kya खोया, क्या पाया, जान सकें