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मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

ये इश्क है

इश्क इन्सान की जरूरत
कब बन जाता है
पता ही नही चलता
इश्क करते करते इश्क
कब खुदा बन जाता है
पता ही नही चलता
इश्क की खातिर
कब जान चली जाती है
पता ही नही चलता
इश्क की गली में
दुनिया को कब भूल जाते हैं
पता ही नही चलता
इश्क ही खाना
इश्क ही पीना
इश्क ही सोना
इश्क ही रोना
इश्क ही हँसना
इश्क ही ख्वाब
इश्क ही हकीकत
कब बन जाता है
पता ही नही चलता
इश्क के दरिया में
डूबकर भी
दिल की प्यास
कायम रहती है
इश्क के पागलों को
कब खुदा मिल जाता है
पता ही नही चलता

4 टिप्‍पणियां:

सुशील छौक्कर ने कहा…

आप इतनी जल्दी जल्दी कैसे ख्वाब बुन लेती हैं?

इश्क के पागलों को
कब खुदा मिल जाता है
पता ही नही चलता

वाह क्या बात हैं। ये इश्क की माला अच्छी लगी।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव हैं।बधाई।

इश्क इन्सान की जरूरत
कब बन जाता है
पता ही नही चलता
इश्क करते करते इश्क
कब खुदा बन जाता है

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुदर ....

vijay kumar sappatti ने कहा…

इश्क के पागलों को
कब खुदा मिल जाता है
पता ही नही चलता

vandana ji

khuda ke ishq me jo maza hai ,wo aur kahan ..

badhai