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शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

काँटों में है दर्द का अथाह सागर
इतना दर्द कैसे समेटा है अपने में
लोग कांटा लगने पर देते हैं गाली
मगर हमें तो प्यार आता है काँटों पर ही
काँटों पर प्यार आता है इसलिए
हमने और काँटों ने सहा है सिर्फ़ दर्द

1 टिप्पणी:

vijay kumar sappatti ने कहा…

kya baat kahi hai aapne ..
हमने और काँटों ने सहा है सिर्फ़ दर्द
..... wah , dard ki koi juban bhi nahi hoti , sahna hi niyati hai ..


vijay